ॐ नमः शिवाय, बिहार के इस जिले में भगवान शिव ने भी की थी नौकरी, चूल्हे की लकड़ी से हुई थी पिटा’ई…

आज हम आपको उस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं कि जो बिहार (Bihar) के मधुबनी (Madhubani) जिले के भवानीपुर गांव में स्थित है. भगवान शिव का यह मंदिर उगना महादेव व उग्रनाथ मंदिर के नाम से मशहूर है. ऐसा कहा जाता है कि इसी मंदिर में भगवान शिव ने स्वयं मैथिली भाषा के महाकवि विद्यापति के घर चाकरी की थी.

विद्यापति के रचित कविताएं शिव को इतनी पसंद आईं कि उन्हें सुनने के लिए वे विद्यापति के यहां अपना नाम और रुप बदलकर नौकर के रुप में काम करने लगे. उनका नौकर के तौर पर नाम था उगना.

 

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आईये जानतें हैं इस मंदिर से जुड़े ऐतेहासिक तथ्य और इतिहास

कहा जाता है कि विद्यापति की भक्ति और रचनाओं से प्रसन्न होकर भगवान शिव एक दिन वेष बदलकर उनके घर आ गए. शिव जी ने अपना नाम उगना बताया. शिव सिर्फ दो वक्त के भोजन पर नौकरी करने के लिए तैयार हो गए. एक दिन उगना विद्यापति के साथ राजा के दरबार में जा रहे थे.

तेज गर्मी के वजह से विद्यापति का गला सूखने लगा. लेकिन आस-पास जलस्रोत नहीं था. विद्यापति ने उगना से कहा कि कहीं से जल का प्रबंध करो. भगवान शिव कुछ दूर जाकर अपनी जटा खोलकर एक लोटा गंगा जल भर लाए. विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गंगा जल का स्वाद लगा, पर सोचा इस वन में यह जल कहां से आया. कवि विद्यापति को संदेह हो गया कि उगना स्वयं भगवान शिव हैं. जब विद्यापति ने उगना को शिव कहकर उनके चरण पकड़ लिए तब उगना को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा. शिव ने विद्यापति को दर्शन दिए पर कहा कि कभी किसी से मेरा वास्तविक परिचय मत बताना.

 

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एक दिन विद्यापति की पत्नी सुशीला ने उगना को कोई काम दिया. उगना उस काम को ठीक से नहीं समझा और गलती कर बैठा. सुशीला इससे नाराज हो गयी और चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर लगी शिव जी की पिटाई करने लगी. विद्यापति ने जब यह दृश्य देख तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा ‘ये साक्षात भगवान शिव हैं, इन्हें मार रही हो.’ फिर क्या था, विद्यापति के मुंह से यह शब्द निकलते ही शिव वहां से अर्न्तध्यान हो गए.

विद्यापति को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह शिव जी को ढूंढ़ने के लिए वन में निकल पड़े. भक्त को हैरान-परेशान देख भोलेनाथ उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें समझाया कि वह अब उनके साथ नहीं रह सकते, लेकिन अब एक शिवलिंग के रूप में वह हमेशा उनके पास रहेंगे. उसके बाद से ही वहां स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हो गया.

 

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मंदिर परिसर में स्थित महाकवि विद्यापति की मूर्ति, सालों भर रहती है भक्तों की भीड़

उगना महादेव मंदिर के गर्भगृह में छह सीढ़ियां उतरकर जाना पड़ता है।. यहां माघ कृष्ण पक्ष में नर्क निवारण चतुर्दशी के पर्व को काफी धूमधाम से मनाया जाता है. इस वक्त जिस मंदिर को भक्त देखते हैं उसका निर्माण साल 1932 में किया गया है. हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि साल 1934 में आए भूकंप से भी मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था.

मंदिर के सामने एक सरोवर और एक कुआं भी है. इस कुएं के बारे में लोग कहते हैं कि यही वह जगह है जहां से शिव जी ने जटा खोलकर गंगाजल निकाला था. यहां आने वाले श्रदलु इस पानी को जरूर पीते हैं.

इस उगना महादेव के मंदिर के गर्भ गृह में जाने के लिए छह सीढ़िया उतरनी पड़ती है. ठीक उसी तरह जैसे उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिवलिंग तक पहुंचने के लिए छह सीढ़ियां उतरनी पड़ती है. उगना महादेव के बारे में कहा जाता है कि ये आपरूपी प्रकट हुआ शिवलिंग है.

 

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कैसे जाए उगना महादेव मंदिर…

इस मंदिर तक पहुंचना बहुत आसान काम नहीं है. पर यदि आपकी अपनी सवारी हो तो आप यहां आसानी से पंहुच सकते हैं.

दरभंगा से सकरी होकर मधुबनी जाने वाली रेलवे लाइन पर उगना हाल्ट पड़ता है. यहां से उगना महादेव मंदिर की दूरी करीब दो किलोमीटर है. बस से दरभंगा से सकरी होते हुए पंडौल पहुंचे.
पंडौल से एक किलोमीटर पहले ब्रहमोतरा गांव से भवानीपुर की दूरी 4 किलोमीटर है. यहां से आप पैदल या फिर निजी वाहन से जा सकते हैं.

जब शिव अंतर्ध्यान हो गए थे तो कवि विद्यापति इतने ब्याकुल हो गए थे की खाना पीना तक छोड़ दिया था और एक विरह गीत लिखा

 

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“उगना रे मोर कतय गेलाह। कतए गेलाह शिब किदहुँ भेलाह।।”

मिथिला क्षेत्र के लोग विद्यापति की ये पंक्तियां उगना महादेव की कथा के साथ गाकर सुनाते हैं.

 

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