हम अपनी सारी तकलीफ और परेशानियां भूल जाते हैं जब सफलता की ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं। यहां तक पहुंचने के लिए हम कई विषम परिस्थितियों का सामना करते हैं। सफलता या जीत इतनी आसानी से हासिल नहीं होती। लेकिन उस ऊंचाई पर पहुंचने के बाद मन में सिर्फ और सिर्फ एक ही खुशी रहती है कि मैंने यह प्राप्त कर लिया, अपने सपने को साकार कर लिया। कैसे प्राप्त किया, इससे कोई मतलब नहीं रहता। अगर हम कोई प्रेरणादायक कहानियां पढ़ते हैं तो इससे हम जागरूक तो होते ही है, साथ ही बहुत सारे अनुभव से भी रूबरू होतें हैं। कहानी पढ़ने के दौरान हमे इस बात का इंतजार भी रहता है इसमें आगे क्या होगा…..
आज की हमारी कहानी एक ऐसी औरत की है जो अनपढ़ होने के कारण गली-गली में घूमकर कोयला बेचने का कार्य करती थी। लेकिन उन्होंने ख़ुद को सफलता का मिसाल बनाकर सबके सामने पेश किया है। सबके लिए एक उदाहरण बनी है। तो चलिए जानते हैं आज वह कैसे करोड़ों का कारोबार स्थापित की।
सविताबेन कोलसावाला को आज गुजरात में हर व्यक्ति जनता है। इन्हें सविताबेन कोयलवाली के नाम से भी जाना जाता है। आज इनके पास बड़ी-बड़ी गाड़ियां हैं। लेकिन एक समय था जब यह जीवन यापन के लिए बहुत ही संघर्ष किया करती थी।
गुजरात की सविताबेन
सविताबेन देवजीभाई परमार ( Savitaben Devjibhai Parmar) गुजरात (Gujrat) से सम्बंध रखती हैं। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर थी। इनके पति के नौकरी से ही घर का गुजारा चलता था। जो की ट्रांसपोर्ट सर्विस में कार्य कर अपने परिवार का पालन पोषण किया करते थे। अपने घर की ऐसी हालत देख सविता ने सोचा कि वह भी अपने पति की मदद करें। वह अपने पति की मदद के लिए आगे भी आई और नौकरी ढूंढने लगीं। लेकिन अनपढ़ होने के कारण उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी।
शुरू किया कोयला बेंचना
उन्होंने बहुत कोशिश किया कि वह किसी कंपनी में नौकरी करे, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। फिर उन्होंने अपने माता-पिता के द्वारा किए जा रहे कार्य को अपनाया। उनके माता-पिता कोयला बेचकर जीवन यापन किया करते थे। लेकिन जब वह कोयला बेचने के लिए व्यापारियों के पास गई तो व्यापारियों ने उन्हें कोयला नहीं दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह तो अनपढ़ है, कभी भी कोयला लेकर भाग सकती है, जिससे उन्हें घाटा हो सकता है। कोयले के व्यापार के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। इसीलिए उन्होंने कारखानों से जले हुए चीज़ों को उठाया और गली-गली घूमकर बेचने लगी।
कोयले का दुकान खोला
इस दौरान सविता को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन वह अपने रास्ते से कभी हटी नहीं। सफलता पाने के लिए हमेशा कोशिश करती रही। कोयला बेचने के दौरान उन्हें बहुत से लोग जान चुके थे। धीरे-धीरे उन्होंने पैसा इकट्ठा किया और एक छोटी सी दुकान खोली । उनके कोयले का यह दुकान सफल हुआ और उनकी खूब बिक्री होने लगी।
मिली बड़ी सफलता
एक समय उन्हें सिरेमिक वालों ने आर्डर दिया। यह कोयला बेचने के दौरान वह विभिन्न कंपनियों में जाया करती थी तो देखती थी कि यहां कार्य हो रहा है। फिर इन्होंने सिरेमिक के भठ्ठी का निर्माण किया। इनके सिरेमिक की गुणवत्ता अच्छी होती थी और उचित मूल्य होता इसके कारण इनकी खूब बिक्री होने लगी। इन्होंने बहुत जल्दी इस कार्य मे सफलता हासिल कर ली। वर्ष 1989 में इन्होंने प्रीमियर सिरेमिक्स को बनाना शुरू किया। आगे इन्होंने 1991 में स्टर्लिंग सिरेमिक्स की स्थापना की। इसमें इन्होंने सिरेमिक्स प्रोड्क्स को बेचना शुरू किया। देखते ही देखते इनकी उपलब्धियां ऊंचाइयों को छूने लगी।
एक औरत जो पढ़ी लिखी ना होने के चलते गली-गली कोयला बेचकर कर जीवन यापन करती थी। आज वह सफलता की मिसाल बनी हैं। आज इनके पास आलीशान बंगला और बड़ी-बड़ी गाडियां हैं। The Biharians Savitaben Devjibhai Parmar को सलाम करता है।