जय मां मुंडेश्वरी, बिहार के इस देवी मंदिर में होते हैं एक से बढ़कर एक चमत्कार, जानकर रह जाएंगे दंग..

बिहार के कैमूर जिले में मां मुंडेश्वरी का मंदिर सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है, यहां लगभग 1900 वर्षों से लगातार हो रही है पूजा

मंदिरों के देश भारत में कई ऐसे प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर हैं जो आज भी अपनी भव्यता और महत्ता के लिए भक्तों और पर्यटकों के बीच प्रसिद्द हैं. इन्हीं में से एक बिहार का मुंडेश्वरी देवी मंदिर, दुनिया के सबसे प्राचीन कार्यशील मंदिरों में से एक है. यह बिहार के कैमूर जिले के कौरा क्षेत्र में स्थापित है. यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव जी और देवी शक्ति को समर्पित है.

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बिहार के कैमूर जिले में मां मुंडेश्वरी का प्राचीन मंदिर है. यहां सात्विक तरीके से बलि दी जाती है, बली के बाद बकरा जीवित ही रहता है. मुंडेश्वरी माता मंदिर मोहनियां (भभुआ रोड) रेलवे स्टेशन के पास स्थित है. इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. मुंडेश्वरी ट्रस्ट के अध्यक्ष अपूर्व प्रभास के अनुसार इस मंदिर में लगभग 1900 सालों से लगातार पूजा हो रही है. ये देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है.

माता मंदिर कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में 608 फीट की ऊंची पवरा पहाड़ी पर स्थित है. मंदिर परिसर में स्थित शिलालेखों से इस मंदिर का इतिहास मालूम होता है. 1868 से 1904 के बीच कई ब्रिटिश और पर्यटक यहां आ चुके हैं. मंदिर की प्राचीनता का आभास यहां मिले महाराजा दुत्‍तगामनी की मुद्रा से भी होता है, जो बौद्ध साहित्य के अनुसार अनुराधापुर वंश का था और ईसा पूर्व 101-77 में श्रीलंका का शासक था.

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  • मंदिर में बलि दी जाती है, लेकिन रक्त नहीं बहता

मुंडेश्वरी मंदिर की विशेषता यह है कि यहां बकरे की बलि दी जाती है, लेकिन बलि को मारा नहीं जाता है, रक्त नहीं बहता है। यहां बलि की सात्विक परंपरा है. जब भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं तो वे यहां बलि के रूप में बकरा चढ़ाते हैं.  मंदिर के संबंध में मान्यता प्रचलित है कि चंड-मुंड असुरों के नाश के लिए देवी प्रकट हुई थीं. चंड के वध के बाद मुंड राक्षस इसी पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने उसका वध किया था. इसीलिए इस मंदिर को मुंडेश्वरी माता कहा जाता है. बलि के लिए जब बकरे को माता की प्रतिमा के सामने लाया जाता है तो पुजारी चावल के कुछ दाने मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर डालता है. इससे बकरा बेहोश हो जाता है. कुछ देर की पूजा के बाद पुजारी फिर से बकरे पर चावल डालते हैं तो वह होश में आ जाता है. उसे आजाद कर दिया जाता है या भक्त को लौटा दिया जाता है.

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  • ऐसी है माता की प्रतिमा

मंदिर में दुर्गा मां के वैष्णवी स्वरूप को ही मां मुंडेश्वरी स्थापित किया गया है. मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा के रूप में है, क्योंकि इनका वाहन महिष है. इस मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा की ओर है. कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह मंदिर 108 ईस्वी में बनवाया गया था. इसका निर्माण शक शासनकाल में हुआ था. यह शासनकाल गुप्त शासनकाल से पहले का समय माना जाता है. मंदिर परिसर में कुछ शिलालेख ब्राह्मी लिपि के लगे हैं. जबकि गुप्त शासनकाल में पाणिनी के प्रभाव के कारण संस्कृत का प्रयोग किया जाता था. यहां 1900 वर्षों से लगातार पूजा हो रही है. मंदिर का गर्भगृह अष्टाकार है. गर्भगृह के कोने में देवी की मूर्ति स्थापित है और बीच में चर्तुमुखी शिवलिंग है. मंदिर में शारदीय और चैत्र माह के नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं. वर्ष में दो बार माघ और चैत्र में यहां यज्ञ होता है. 1968 में पुरातत्व विभाग ने यहां की 97 दुर्लभ मूर्तियों को सुरक्षा की दृष्टि से पटना संग्रहालय में रखवा दिया है. तीन मूर्तियां कोलकाता संग्रहालय में हैं.

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  • कैसे पहुंचे मुंडेश्वरी मंदिर

ये मंदिर बिहार के कैमूर जिले में स्थित है. मुंडेश्वरी मंदिर पहुंचने के लिए यहां से सबसे करीबी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड है. ये मुगलसराय-गया रेलखंड लाइन पर स्थित है. मंदिर स्टेशन से मंदिर की दूरी करीब 25 किलोमीटर है. भभुआ स्टेशन से मोहनिया से सड़क मार्ग होते हुए मुंडेश्वरी मंदिर पहुंचा जा सकता है. मंदिर का निकटतम एयरपोर्ट लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, बाबतपुर, वाराणसी में है. यहां से मुंडेश्वरी मंदिर की दूरी करीब 80 किमी है. वाराणसी से बस, रेल या प्राइवेट कार से मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.

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