बिहार के बेटे सत्यकाम आनंद का छोटे शहर आरा से बॉलीवुड तक का सफर काफी स्ट्रगल वाला रहा, सिनेमा जगत में देश ही नहीं विदेशों में भी गाड़ा कामयाबी का झंडा

सत्यकाम आनंद (Satyakam Anand) बिहार के आरा जिला के रहने वाले हैं. छोटे से शहर से बॉलीवुड (Bollywood) का सफर काफी स्ट्रगल वाला रहा है. सत्यकाम ने एक्टिंग की शुरुवात नुक्कड़ नाटकों से की थी. हिन्दी सिनेमा जगत में देश ही नहीं विदेशों में कामयाबी का झंडा गाड़ने वाले भोजपुर के छोरे सत्यकाम आनंद की पहचान बॉलीवुड(Bollywood) में चर्चित फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर (Gangs of Wasseypur Actor) में विधायक जेपी सिंह (J P Singh) के रोल में बनी.

इनका एक डॉयलॉग लोगों की जुबां पर रहता है – “बेटा तुमसे ना हो पाएगा”

बिहार के छोटे शहर आरा से है बॉलीवुड एक्टर सत्यकाम आनंद

सत्यकाम आनंद (Satyakam Anand) को फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर'(Gangs of Wasseypur Actor) में ‘जेपी सिंह’ (J P Singh) के रूप में अपनी भूमिका के लिए पहचान मिली, जो रणधीर सिंह के बेटे थे. उन्होंने ‘द मेयटेप’, ‘डवान्डवा’, ‘लेट्स फ्लाई विद माय पेपर रॉकेट’ जैसी फिल्मों में भी काम किया है.

सत्यकाम आनंद बिहार के आरा जिला के रहने वाले हैं. उनका परिवार शिक्षा में बहुत अधिक था लेकिन सत्यकाम आनंद अपनी पढ़ाई में बहुत मजबूत नहीं थे. 15 साल की उम्र में, पटना के एक शीर्ष कॉलेज (साइंस कॉलेज) में उनके लिए प्रवेश पाने के लिए, उन्होंने नाटक कोटे के माध्यम से प्रवेश पाने की कोशिश की.

उन्हें कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला, लेकिन अभिनेता बनने की उसकी राह उसी पल से शुरू हो गई. 19 साल की उम्र में, उन्होंने रंगमंच शुरू किया और लगभग सभी प्रमुख नाटक / थिएटर प्रतियोगिताओं में भाग लिया जो पूरे उत्तर भारत में आयोजित किए गए थे.

वर्ष 1996 में उन्होंने अभिनय को अपना करियर बनाने के लिए पढ़ाई छोड़ दी और अरविंद गौड़ के साथ दिल्ली चले गए. दिल्ली में उन्होंने 2001 तक थिएटर किया. एक नाटक ‘समयात्रा’ में भाग लेते हुए उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की.

दिल्ली और गोवा के बीच की दूरी तय करना उनके लिए बहुत मुश्किल था और इसलिए वे मुंबई चले गए और वहाँ शादी कर ली. सत्यकमानंद की जीवनशैली के एक निश्चित बिंदु पर, उनका अभिनय करियर बहुत ही कम दौर से गुजरा, जिससे उन्हें वित्तीय समस्याएँ हुईं जिससे वे नशा करने लगे. सत्यकाम आनंद की पत्नी “सिम्मी” अनुराग कश्यप की सचिव थीं. सत्यकमानंद ने कहा कि वह कभी फिल्मों में अभिनय नहीं करना चाहते थे. वह केवल अभिनय सीखने और उपलब्ध किसी भी मंच पर प्रदर्शन करना चाहते थे.

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पत्नी ने कहा, हारो मत फिल्मों में ट्राई करो, घर मैं चलाउंगी

वर्तमान दौर में नए तरीके की फिल्में आ रही हैं, जो निर्देशन की अद्भुत कला को समाहित किए हुए अलग तरीके से कहानियों को लोगों के सामने प्रस्तुत कर रही हैं. ऐसी फिल्मों में न तो कोई बड़ा कलाकार होता है और न ही ये फिल्में बड़ी बजट की होती हैं, लेकिन सफलता के झंडे गाड़ रही हैं. नई राह पर बॉलीवुड को ले जाने वाले फिल्मकारों की बात करें तो विशाल भारद्वाज, अनुराग कश्यप, दिबाकर बैनर्जी और तिग्मांशु धुलिया का नाम सामने आता है. वहीं, कलाकारों में मनोज वाजपेयी, अभय देओल, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, केके और अभिमन्यु सिंह सरीखे लोग हैं. इसी कड़ी में एक नया नाम जुड़ गया है सत्यकाम आनंद का.

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में रामाधीर सिंह के बेटे बने जेपी सिंह के किरदार में सत्यकाम को कोई खास स्पेस नहीं मिला, लेकिन जितना भी मिला उसका भरपूर फायदा उठाया. बिहार के आरा में जन्में शिक्षक शिवकुमार सहाय के पुत्र सत्यकाम आनंद को यह मौका काफी मुश्किल से मिला था. एक छोटे-से शहर आरा से मायानगरी मुंबई और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ तक के सफर काफी स्ट्रगल वाला रहा.

सत्यकाम आनंद (Satyakam Anand) 1989 में बिहार के आरा में रंगमंच से जुड़ गए. लगभग 8 साल तक वहां थिएटर करने के बाद 1997 में वे दिल्ली गए और वहां अस्मिता थिएटर ग्रुप से जुड़ गए. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में जाने का सपना था, कोशिश बहुत की, लेकिन सेलेक्शन नहीं हुआ. दोबारा उन्होंने ट्राई भी नहीं किया और 2002 में मुंबई आ गए. वहा भी वे थिएटर से जुड़ गए और फिर टीवी सीरियल्स जैसे, ‘संपत एंड संपत’, जी टीवी पर ‘पिया का घर’, सहारा पर ‘हकीकत’ किया. उसके बाद उन्हें एक बड़ा ब्रेक जी टीवी (Zee TV) के सीरियल ‘तमन्ना हाउस’ में मिला. इस सीरियल के बाद कई रास्ते खुलते नजर आए, लेकिन वास्तविकता में कुछ भी नहीं हुआ.

2008 में असली संघर्ष का दौर शुरू हुआ. सत्यकाम संघर्ष से परेशान होकर फिल्म लाइन और मुंबई छोड़ने के चक्कर में पड़ गए थे. इसी दौरान उनके घर वालों ने उनका खूब सपोर्ट किया. सबसे बड़ा सपोर्ट उनकी पत्नी “सिम्मी” ने किया. सिम्मी ने सत्यकाम से कहा कि मैं नौकरी करूंगी और आप अपने फिल्मी करियर पर फोकस करो. इसके बाद उन्हें एक फिल्म ‘द्वंद्व’ मिली, जिसमें उन्होंने लीड रोल किया. उन्होंने उस फिल्म को कई निर्देशकों को दिखाया, लेकिन किसी ने उसे नहीं देखा. बाद में वे अनुराग कश्यप जी से मिले और उन्हें अपनी फिल्म दिखाई. उन्हें उनका रोल बहुत अच्छा लगा और उन्हें ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में जेपी सिंह का रोल मिल गया

उन्होंने कहा बॉलीवुड में सबके लिए संभावनाएं हैं. बशर्ते की आपको एक्टिंग आती हो और आप प्लान वे में संघर्ष के लिए तैयार हों. बॉलीवुड में हर साल अपना लक आजमाने हजारों लोग आते हैं, उन हजारों लोगों में से कुछ को ही मौका मिल पाता है. ये मौका उन लोगों को ही मिलता है, जो लगातार संघर्ष करते हैं. यहां धैर्य का होना बहुत जरुरी है.

साई बाबा पर आधारित नए कार्यक्रम में दिखें बॉलीवुड एक्टर सत्यकाम आनंद

अभिनेता सत्यकाम आनंद (Satyakam Anand) हाल ही में टेलीविजन धारावाहिक ‘मेरे साई : श्रद्धा और सबूरी‘ में नजर आए. कार्यक्रम में उन्होंने कान्होजी के किरदार को निभाया. उन्होंने कहा, “जब मुझे इस शो में किरदार निभाने का मौका मिला तो मुझे और मेरा परिवार को बेहद खुशी हुई. पर्दे पर कलाकारों के काम को ध्यानपूर्वक देखते हुए मैंने शो के लिए तैयारी शुरू कर दी थी.”

सत्यकाम ने आगे कहा, “मैं सेट पर भी गया और काम की शैली को समझने और वहां के माहौल के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए मैं पूरे क्रू के साथ भी मिला. तुषार दलवी जैसे अनुभवी अभिनेता के साथ काम करने का यह एक अच्छा मौका था. कान्होजी की भूमिका काफी दिलचस्प है और इसमें भावनाओं के उतार-चढ़ाव का स्तर देखने को मिला. यह सीखने और अपने अभिनय कौशल को बढ़ाने का एक बेहतरीन मौका था.”

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पर्दे पर अक्सर बिहार को निगेटिव दिखाया जाता है, असल में बॉलीवुड में बिहार को लेकर क्या है सोच?

सत्यकाम ने कहा, – ऐसा बिल्कुल नहीं है हर फिल्म में बिहार को निगेटिव ही नहीं दिखाया जाता है. ‘तीसरी कसम’ समेत प्रकाश झा की कई फिल्में हैं जो बिहार को गलत नहीं दिखाती हैं, बल्कि बिहार के बदलाव, वहां के लोगों के सकारात्मक सोच को दिखाती हैं. कई फिल्मों में गलत भी दिखाया गया है तो उसके पीछे वजह ये है कि बिहार विविधताओं से भरा राज्य रहा है. वहां फिल्म के लिए काफी मैटेरियल है, इसलिए बिहार की पृष्ठभूमि पर हर तरीके की फिल्में बनती हैं. बॉलीवुड में बिहार के लोगों के प्रति सोच की बात करें, तो यहां बिहार के लोगों को काफी विश्वास की नजर से देखा जाता है. सभी जानते हैं कि बिहार के लोग काफी मेहनती होते हैं.

सत्यकमानंद ने एक संगठन बनाया है जो कानूनी मार्गों के माध्यम से भोजपुरी सिनेमा को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा है. उनकी पहल, Ashlilta Mukht भोजपुरी एसोसिएशन (AMBA) की स्थापना वर्ष 2015 में अर्रा जिले में की गई थी. फिल्म में अश्लील गीतों और वीडियो के कारण, बिहार को भी सत्यकामनंद के अनुसार एक बुरे राज्य के रूप में टैग किया जाता है.

मां, माटी और माइग्रेशन

सत्यकाम ने कहा, –  भोजपुरी को भोजपुरी वाले ही तरजीह नहीं दे रहे हैं. भोजपुरी में कंटेंट, क्वालिटी कंटेंट का घोर अभाव है. भोजपुरी संगीत का नाम आते ही पढ़ी-लिखी जनता नाक-भौं सिकोड़ने लगती है. इसका प्रमुख कारण अश्लीलता है. सोचने वाली बात ये है कि क्या ऐसा संगीत बनाने वाले लोग इन गानों को अपने घरों में बजाते हैं?

माँ, माटी, माइग्रेशन हर उस आदमी की कहानी है जो दो जून की रोटी के जुगाड़ में अपनी मिट्टी से दूर जाकर रहने को मजबूर है. ये वीडियो अम्बा (अश्लीलतामुक्त भोजपुरी एसोशिएशन) के द्वारा सिर्फ ये दिखाने के लिए बनाया गया है कि भोजपुरी में अच्छे काम की काफी गुंजाइश है. अच्छा काम हो सकता है. वीडियो यूट्यूब पर मुफ्त में उपलब्ध है. सत्यकाम ने कहा कि प्रयास ये रहेगा कि आने वाले समय में एक अच्छी इनवेंटरी तैयार कर ली जाए.

अश्लीलता मुक्त भोजपुरी एसोसिएशन (अम्बा) के प्रोडक्शन में बनी भोजपुरी सॉन्ग “मां माटी और माइग्रेशन’ के प्रोमो का रिस्पांस दर्शकों में काफी अच्छा देखा गया.

 

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